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2025 दशहरा

दशहरा (जिसे विजयादशमी या दसरा भी कहा जाता है) सनातन धर्म का प्रमुख
त्योहार है। वर्ष 2025 में दशहरा 2 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जाएगा। यह
उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह पर्व हर साल आश्विन मास
के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में
दशहरे को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे महाराष्ट्र में ‘दसरा’,
बिहार-झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘दश’ आदि । देश-विदेश में लोग शस्त्र
पूजा, शमी पूजन और रावण-दहन के साथ आनंद और उल्लास से यह उत्सव
मुहूर्त परामर्श
सनातने
मनाते हैं। दशहरा के अवसर पर भारत के अधिकतर राज्यों में स्कूल,कालेज,
बैंक और कार्यालयों में दशहरा की छुट्टियाँ घोषित होती हैं। यह समय परिवार
के साथ समय बिताने और मेलों में जाने के लिए आदर्श माना जाता है।
दशहरा उत्सव क्या है?
दशहरा उत्सव बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इस दिन रामायण
की कथा सुनाई जाती है और रावण दहन की परम्परा निभाई जाती है।
कहानियों के अनुसार दशहरे के दिन राम ने रावण का वध किया था और वहीं
माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। इसलिए इसे विजयादशमी भी कहा
जाता है। पूरे देश में इस त्योहार को रावण के विशाल पुतले जलाकर मनाया
जाता है, साथ ही लोग शस्त्र पूजा और शमी वृक्ष पूजा करते हैं। घर-घर रंगोली बनाई जाती है और बच्चे रावण-दहन के चित्र या हैप्पी दशहरा पोस्टर बनाकर
उत्सव की साज-सज्जा करते हैं। दशहरा मेले सजते हैं और शुभ दशहरा
संदेशों के आदान-प्रदान से पर्व का वातावरण उल्लासमय हो जाता है।
दशहरा 2025: तिथि और समय

  • त्योहार की तिथि: 2 अक्टूबर 2025
    •विजय मुहूर्त: दोपहर 2:27 से 3:14 बजे तक
  • दशमी तिथि प्रारंभ: 1 अक्टूबर 2025, शाम 7:03 बजे
  • दशमी तिथि समाप्तः 2 अक्टूबर 2025,शाम 7:12 बजे
    इन समयों के अनुसार पूरे भारत में पूजा-अर्चना की जाती है। पंचांग के
    अनुसार यह तिथि और मुहूर्त अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के
    अंतर्गत आते हैं।
    दशहरा की कथा
    दशहरा की कथा दो प्रसिद्ध पौराणिक प्रसंगों से जुड़ी है, जो बुराई पर
    अच्छाई की विजय का प्रतीक हैं।
    1) पहली कथा – श्रीराम और रावण का युद्धः त्रेतायुग में अयोध्या के राजा
    दशरथ के पुत्र श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला। वनवास के दौरान लंका
    के राजा रावण ने माता सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया। श्रीराम ने अपने
    भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान और वानर सेना के सहयोग से लंका पर चढ़ाई की।
    कई दिनों तक चले महासंग्राम के अंत में आश्विन शुक्ल दशमी के दिन श्रीराम
    ने रावण का वध किया और माता सीता को मुक्त कराया। इस दिन को
    “विजयादशमी” या “दशहरा” कहा गया, क्योंकि यह सत्य और धर्म की विजय
    का प्रतीक बना।
    2) दूसरी कथा – माँ दुर्गा और महिषासुर का युद्धः एक अन्य पौराणिक कथा
    के अनुसार, असुरराज महिषासुर ने घोर तप कर ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर
    तीनों लोकों में आतंक फैलाया। तब देवताओं की शक्ति से माँ दुर्गा का प्रकट
    हुआ। माँ दुर्गा ने नवरात्रि के नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें
    दिन यानी दशमी को उसका वध कर दिया। तभी से यह दिन महिषासुर मर्दिनी
    माँ दुर्गा की विजय के रूप में भी मनाया जाता है।
    इन दोनों कथाओं में यह स्पष्ट होता है कि चाहे संकट कितना भी बड़ा हो,धर्म
    और सत्य की जीत अंत में होती ही है। इसलिए दशहरे के दिन प्रातः देवी दुर्गा
    की पूजा और शाम को श्रीराम की विजय का उत्सव (रावण दहन) मनाया जाता
    है।
    दशहरा का अनुष्ठान
    दशहरे पर कई धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। रात मेंबड़े पैमाने पर रावण दहन का
    आयोजन किया जाता है। इसमें रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए
    जाते हैं, जो असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। दिन में आयुध पूजा भी की
    जाती है,जिसमें पूर्वजों से प्राप्त अश्व-शस्त्र आदि का पूजन होता है। वानर समूह
    और महाभारत में पांडवों ने भी अपने हथियार शमी वृक्ष में छुपाकर रखा था;
    संभवतः इन्हीं कारणों से दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा की परंपरा है।
    a) शस्त्र पूजाः विजय मुहूर्त में शस्त्रों की पूजा की जाती है।
    5)शमी पूजनः शाम को शमी वृक्ष के नीचे मिट्टी और जल से पूजा-अर्चना
    की जाती है।
    ज्याति
    86 पेज की फलादेश कुंडली
  • अपराजिता पूजाः मा लक्ष्मा का अपराजिता फूल आपत किए जात है;
    इसे विजयादशमी का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है।
    4)शुभकामनाएँ और रंगोली: घरों में रंगोली,दीपक और पुष्प सजाए
    जाते हैं। बच्चे रावण-दहन के चित्र बनाकर हैप्पी दशहरा पोस्टर्स तैयार
    करते हैं।
    इन अनुष्ठानों से परिवार में सुख-समृद्धि, आशीर्वाद और नई सफलता की
    कामना की जाती है।
    दशहरा के लाभ
    दशहरा दस प्रकार के पापों (क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि) के त्याग की
    प्रेरणादेता है।
    इस दिन पूजा-अर्चना से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
    मन की उदासी और तनाव दूर होकर मानसिक शांति प्राप्त होती है।
    धर्म और सत्कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
    जीवन में नई ऊर्जा, उत्साह और आत्मबल का संचार होता है।
    ईर्ष्या, मोह और लालच जैसी कमजोरियों पर नियंत्रण संभव होता है।
    सच्चे मन से की गई पूजा से मनोकामनाएँ पूर्ण होने की मान्यता है।
    आत्मा की शुद्धि और विचारों की पवित्रता की अनुभूति होती है।
    परिवार और समाज में आपसी प्रेम और सहयोग की भावना बढ़ती है।
    धार्मिक कार्यों में भाग लेकर पुण्य और आत्मिक संतोष प्राप्त होता है।
    दशहरा की पूजा विधि
    a) प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और घर के पूजा स्थान या किसी
    शांत स्थान को गंगाजल से पवित्र करें।
    b) ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में लकड़ी की चौकी रखें और उस पर लाल
    या पीला वस्त्र बिछाएँ। चौकी पर भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और
    हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। साथ ही माँ दुर्गा की प्रतिमा या
    चित्र भी रखें।
    c) दीपक जलाएं, रोली, अक्षत, पुष्प, गंध, धूप, कपूर आदि सामग्री से पूजा
    करें।
    d) शमी वृक्ष की पूजा करें। शमी की पत्ती (जिसे सोना कहते हैं) को पूजा में
    रखें और परिवार में बाँटें। यह विजय और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
    e) देवी अपराजिता की पूजा के लिए अष्टदल कमल (अगर संभव हो) या उसके
    स्थान पर हल्दी और चावल से आठ पंखुड़ी का आकार बनाकर पूजा करें।
    1) भगवान श्रीराम का स्मरण करते हुए “ॐ दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय
    धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्” मंत्र का जप करें।
    g) माता दुर्गा की पूजा करें और “ॐ अपराजितायै नमः” मंत्र का जप करें।
    h) रामायण का पाठ, सुंदरकांड या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
    i)अंत में आरती करें, नैवेद्य (लडु, फल या मिठाई) अर्पित करें और परिवार
    में प्रसाद बांटें।
    दशहरा के मंत्र जप ?
    दशहरे के दिन विशेष मंत्रों का जप किया जाता है। रामचंद्र जी के लिए
    प्रचलित मंत्र है:
    “ॐ दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ।”
    मां दुर्गा (अपराजिता) के लिए मंत्र है:
    “ॐ अपराजितायै नमः ।”
    उपर्युक्त मंत्रों का जप भक्त हृदय को आत्मशुद्धि और शक्ति देता है। इन मंत्रों
    से ब्रह्मांडीय ऊर्जा का संचार होता है और पूजा-अर्चना का पुण्यफल बढ़ता है।
    दशहरा का महत्व
    1) अच्छाई की जीत का प्रतीक – दशहरा बुराई पर अच्छाई की विजय का
    पर्व है, जब श्रीराम ने रावण का वध किया और माँ दुर्गा ने महिषासुर का अंत
    किया।
    2)विजयादशमी के रूप में प्रसिद्ध – इसे विजयादशमी कहा जाता है क्योंकि
    इस दिन अधर्म, अन्याय और अत्याचार का अंत हुआ और धर्म की स्थापना
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    3) शक्ति की आराधना का पर्व – दशहरा शक्ति की देवी माँ दुर्गा और
    मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पूजा का विशेष अवसर होता है।
    4) पापों से मुक्त होने की प्रेरणा – यह पर्व दस प्रकार के पापों जैसे – काम
    (वासनात्मक इच्छा), क्रोध (गुस्सा), लोभ (लालच), मोह (अंधा लगाव), मद
    (अहंकार), मत्सर (ईर्ष्या), असत्य (झूठ), अधर्म (अनैतिकता),निंदा (बुराई
    करना) और स्वार्थ (केवल अपना हित देखना) – इन सभी से मुक्ति पाने का
    प्रतीक है। विजयादशमी का यह शुभ दिन आत्मनिरीक्षण का अवसर प्रदान
    करता है, जहाँ व्यक्ति इन पापवृत्तियों का त्याग कर सत्य, धर्म और करुणा के
    मार्ग पर अग्रसर होने का संकल्प लेता है। यही दशहरा का मूल संदेश है –
    आंतरिक बुराई पर विजय और आध्यात्मिक शुद्धि की ओर अग्रसर होना।
    5) शुभ तिथि में शामिल आश्विन मास की दशमी तिथि को अत्यंत शुभ और
    सिद्ध माना गया है, इसलिए यह पर्व विशेष फलदायक माना जाता है।
    6) धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक – दशहरा भारत के हर कोने
    में विविध रूपों में मनाया जाता है, जो हमारी सांस्कृतिक विविधता में एकता
    को दर्शाता है।
    7) शुभ कार्यों की शुरुआत का दिन कई लोग इस दिन नए कार्य,
    व्यवसाय, यात्रा या शस्त्र पूजन से नई शुरुआत करते हैं।
    8) सामाजिक समरसता का पर्व – दशहरा मेलों, रावण दहन, रामलीला जैसे
    कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को जोड़ता है और समाज में सौहार्द फैलाता है।
    9) आस्था, परंपरा और लोक मान्यताओं से जुड़ा – दशहरा पीढ़ियों से चली
    आ रही धार्मिक परंपराओं, कथाओं और सांस्कृतिक आस्थाओं से जुड़ा पर्व है।
    10) नवजीवन और नई सोच की प्रेरणा यह पर्व मन, शरीर और आत्मा
    को सकारात्मक ऊर्जा से भरता है और जीवन में नई दिशा देता है।
    दशहरा का धार्मिक महत्ता
    1) आध्यात्मिक शुद्धि का पर्व – दशहरा आत्मा को शुद्ध करने वाला पर्व माना
    जाता है, जिसमें व्यक्ति अपने भीतर की नकारात्मक ऊर्जा को त्यागने का
    संकल्प लेता है।
    2) नवदुर्गा साधना का समापन – नवरात्रि के नौ दिन की पूजा और साधना
    के बाद दशमी को साधना की पूर्णता और शक्ति की प्राप्ति का प्रतीक माना
    जाता है।
    3) अहंकार पर विजय का प्रतीक – यह पर्व बताता है कि आत्म-गौरव से
    अधिक महत्वपूर्ण है नम्रता और आत्मसंयम, और व्यक्ति को अपने अहंकार
    पर विजय पाना चाहिए।
    4) बुराई के अंत का प्रतीक दशहरा हमें यह सिखाता है कि क्रोध, लोभ,
    ईर्ष्या और अन्य पापवृत्तियों पर विजय पाकर ही हम सच्चे धार्मिक बन सकते
    हैं।
    5) सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा – विजयादशमी का दिन
    व्यक्ति को बड़ा सोचने, विशाल मन और व्यापक दृष्टिकोण अपनाने के लिए
    प्रेरित करताहै।
    6) सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा – यह पर्व बताता है कि
    अंततः जीत सच्चाई और धर्म की ही होती है, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन
    क्यों न हो ।
    7) आत्मनिरीक्षण का अवसर – यह दिन व्यक्ति को आत्ममंथन करने, अपनी
    कमियों को पहचानने और सुधारने का सर्वोत्तम समय माना गया है।
    8) धैर्य और शांति का प्रतीक – दशहरे का त्योहार सिखाता है कि जीवन में
    धैर्य, सहनशीलता और मन की शांति सबसे बड़ी उपलब्धियाँ हैं।
    9) नैतिक मूल्यों की पुनःस्थापना – दशहरा हमें अपने जीवन में नैतिकता,
    सत्य, करुणा और सेवा जैसे मूल्यों को फिर से अपनाने का संदेश देता है।
    10) साधना और भक्ति का महत्व – यह पर्व हमें यह समझाता है कि निरंतर
    साधना, भक्ति और श्रद्धा के माध्यम से ही व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति कर
    सकता है।
    अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
    1.दशहरा किस राज्य में मनाया जाता है?
    दशहरा पूरे भारत में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार,
    मध्यप्रदेश जैसे उत्तर भारत से लेकर कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे
    दक्षिण भारत तक हर जगह भव्य उत्सव होते हैं। हिमाचल (कुल्लू दशहरा),
    महाराष्ट्र (गुजरात, बंगाली विजयादशमी) एवं मैसूर दशहरा (कर्नाटक) प्रसिद्ध
    हैं। यह त्योहार देश भर में वर्ष में एक ही दिन मनाया जाता है। भारत के कई
    स्थानों पर गाँव या शहर के पास में ही मेला लगता है जिससे कुछ लोग तो
    पैदल ही मेला देखने चले जाते है, पूछने पर कहते है कि मेरे निकट ही दशहरा
    मेला है।
  1. हम दशहरा क्यों मनाते हैं?
    हम दशहरा अच्छे की बुराई पर जीत का पर्व मनाते हैं। पूराणों के अनुसार इसी
    दिन भगवान राम ने रावण का वध कर सत्य की रक्षा की और माता दुर्गा ने
    महिषासुर पर विजय पाई। इसलिए दशहरा का पर्व हमें सत्य का अनुसरण
    करने और आत्म-विकास के पथ पर चलने की सीख देता है। इस दिन घरों में
    पूजा-अर्चना करने और रावण-दहन करने से समस्त बुराई समाप्त होती मानी
    जाती है।
  2. दशहरे पर क्या करें?
    दशहरे पर सुबह उठकर स्नान करें और भगवान राम व माता दुर्गा की पूजा
    करें। शाम को रावण दहन समारोह में भाग लें। दिन भर सकारात्मक सोच
    रखें। इस दिन पाप से बचने, क्षमा मांगने एवं पुरानी दुश्मनी भूलकर सामंजस्य
    बनाने का संदेश होता है। परिवार के साथ मिल-जुलकर भजन-कीर्तन करें और
    प्रसाद वितरित करें। शुभ दशहरा कहकर शुभकामनाएँ दें और हैप्पी दशहरा
    पोस्टर व संदेशों से पर्व की बधाई फैलाएँ।
  3. घर पर दशहरा कैसे मनाएं?
    घर पर दशहरा माता दुर्गा और श्रीराम की आराधना कर मनाया जा सकता है।
    घर की पूजा स्थल को सजाएं, रंगोली बनाएं। रावण के पुतले के चित्र बनाकर
    या कागज की प्रतिकृति जला कर भी एक छोटा उत्सव आयोजित किया जा
    सकता है। परिवार में गाने-बजाने के साथ रामायण की कथा सुनें। बच्चे रंगबिरंगी दशहरा पोस्टर या मेले की पेंटिंग बनाकर त्योहार को आनंदमय बना
    सकते हैं।
  4. दशहरे पर पूजा कैसे करें?
    दशहरे पर पूजा के लिए ईशान कोण में चौकी स्थापित करें। पूजा स्थल पर
    गंगाजल छिड़कें और कमल-पुष्प, अक्षत,दीपक आदि रखें। राम और हनुमान
    की मूर्तियाँस्थापित करें और जल-अक्षत अर्पित करें। माँ दुर्गा की पूजा के लिए
    अपराजिता के पुष्प रखें। मंत्रों का जप करें (जैसे ॐ दशरथाय विद्य…”),
    आरती उतारें, और अंत में प्रसाद चढ़ाएँ।
  5. दशहरा 2025 में कब शुरू होगा?
    दशहरा (विजयादशमी) पर्व वर्ष 2025 में 2 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया
    जाएगा। इस दिन विजय शुभ मुहूर्त दोपहर 2:27 बजे से 3:14 बजे तक रहेगा,
    जो किसी भी पूजा या रावण दहन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। पंचांग के
    अनुसार दशमी तिथि का प्रारंभ 1 अक्टूबर 2025 को शाम 7:03 बजे से होगा
    और इसका समापन 2 अक्टूबर 2025 को शाम 7:12 बजे होगा। अतः इसी
    तिथि में दशहरे के सभी धार्मिक अनुष्ठान, पूजन और उत्सव आयोजित किए
    जाएंगे।
  6. दशहरे पर क्या नहीं करना चाहिए?
    दशहरे पर विवाद कलह, तामसिक आहार एवं गलत व्यवहार से बचना
    चाहिए। इस दिनझूठ बोलना, झगड़ा करना वाद-विवाद उत्पन्न करता है। पेड़-
    पौधे नहीं काटें क्योंकि शमी और अपराजिता की पूजा होती है। मांसाहार,
    मदिरा तथा अनैतिक कृत्यों से दूर रहें। किसी का अपमान नकरें और कटु
    वचन न बोलें। प्यार और सद्व्यवहार से लोग शुभ फल पाते हैं।
  7. दशहरे के दिन क्या करें?
    दशहर के दिन भगवान का पूजा और ਮसਮ੫बिताए
    कथा सुनें, धूप-दीप जलाएं। आवश्यक वस्तुओं की पूजा (आयुध पूजा) करें
    और अपने प्रियजनों को मिठाई और नववस्त्र प्रदान करें। परिवार व मित्रों को
    शुभ दशहरा संदेश भेजकर बधाई दें। अवसरानुसार कोई दान-धर्म अथवा
    सत्यनारायण व्रत भी किया जा सकता है।
  8. इसे दशहरा क्यों कहते हैं?
    “दशहरा” नाम ‘दश’ (दस) और ‘हरा’ (हरने) से मिलकर बना है, जिसका
    शाब्दिक अर्थ है “दस सिरों वाले राक्षस का नाश’ । रावण दश सिरों वाला था,
    और राम ने उसे हराकर दशहरे (विजयादशमी) की परंपरा आरम्भ की।
    इसलिए इस पर्व को दशहरा कहा जाता है।
  9. गंगा दशहरा क्या है?
    गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास (गर्मियों) की एक पावन दशमी तिथि को मनाया जाने
    वाला पर्व है, जब गंगा नदी का अवतरण हुआ था। यह मुख्य रूप से उत्तरी
    भारत में मनाया जाता है। इस दिन नदी में स्नान करने, गंगा माता की आराधना
    करने से विशेष पुण्य फल की मान्यता है। (गंगा दशहरा जून माह में पड़ता है,
    विजयादशमी के समय से अलग)।

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