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दीवाली 2025


दीवाली 2025
दिवाती (दीपावली) कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनायी जाती है। दिवाली पाँच दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस, चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, अमावस्या को दिवाली, प्रतिपदा को गोवर्तन पूजा लिखे अत्रकूट भी कहते है और द्वितीया को भाई दूज मनाया जाता है। इस
प्रकार दिवाली का यह पर्व कृत्त पाँच दिनो तक चलता है। दिवाली के दिन माता तहपी पृथ्वी पर विचरण करती है, और अपने भक्तों के घर जाकर उनके घरों को युछ उपत्ति से भर देती है। इसलिए सभी लोग माता लक्ष्मी जी गणेश जी और कुबेर भगवान की पूजा पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से करते है। 2025 मे दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन तक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त प्रदोषकाल में शाम 652 बजे से रात 848 बजे तक रहेगा। अमावस्या तिथि, जो दीपावली का मुख्य आक्षर होती है. 20 अक्टूबर 2025 को दोपहर 3:47 बजे से प्रारभ होकर 21 अक्टूबर को शाम 5:54 बजे तक रहेगी। अत. 2025 में दिवाली का पर्व 20 अक्टूबर
वे विश्चित रूप से शुरू होगा।
दीबाली त्योहार क्या है?
दीवाली जिसे बडी दिवाली भी कड़ा जाता है कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्री राम तका पर विजय प्राप्त करके माता जीता को लेकर अयोध्या लौटे थे। भगवान राम के आगमन की खुशी में आयोध्या वाडियो पूरे नगर को खलाया व दीपक जलाया था इसलिए इस दिन लोग अपने घरो को खजाते है और हरो में भगवान राम के आगमन की खुरी में टीपक जताते है। दिवाली वाले दिन अहेरी रात होती है पर सभी प्रयास करते है की तर के किसी भी कोने में अहेरा न रहे चारो तरफ रोशनी ही रहे। अधेरे को बुराई का प्रतीक माना गया है और प्रकाश को अच्छाई का प्रतीक माना गया है इसलिए यड़ी कोशिश करनी चाहिए की तर के किसी भी कोने में अहेरा ना रहे। ऐसा माना जाता है कि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करने के लिए तरो में आती है है इसलिए इस दिन खात्विक भोजन का ही सेवन करना चाहिए तामसिक भोजन के सेवन से बचना चाहिए। दिवाली के
शुभअवसर पर इमे जुआ और शराब के सेवन से बचना चाहिए क्योंकि इससे माता लक्ष्मी नाराज हो जाती है।
छोटी दीवाली त्योहार क्या है?
दिवाली वे एक दिन पहले मनाया जाने वाला पर्व है जिसे नरक चतुर्दशी या छोटी दीवाली कहते है। नरक चेटा को टीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है। प्रवेश द्वार या नावदान वह नाली जिससे होकर घर का गढ़ा पानी बाहर बड़‌कर जाता है) के पास खरखों के तेल का दीपक जलाने से यमदेव जी की कृपा प्राप्त होती है। नरक चतुर्दशी को लेकर शर्मिक मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण जी ने नरकासुर नामक राक्षस का व४ किया था और लगभग खोलह हजार एक सौ गोपियों को उस दुष्ट राक्षस के बहन से मुक्त किया था अर्थात भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को नरकीय जीवन से मुक्ति दिलाई थी। इस दिन सूर्यास्त के बाद दक्षिण दिशा की ओर चरमुख वाता दीपक जलाकर हाथ जोडकर यमदेव जी वे प्रार्थना की जाती है। ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है, मन शत रहता है और मन में किसी भी प्रकार की बेचैनी नहीं रहती। काम् कोर और लोभ ये नरक के तीन द्वार बताए गए है, यमराजजी की इस दिन पूजा करने से मनुष्य कामरहित, क्रोधहीन और लोधहीन हो जाता है। इष दिन सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनायी जाती है और लक्ष्‌मी जी का आगमन होता है इसलिए तर मे किसी भी प्रकार की गदगी नहीं होनी चाहिए।
छोटी दीवाली 2025 विधि और समपछोटी दिवाली पर्व विधि: 19 अक्टूबर, 2025
चतुर्दशी तिथि प्रारभः 19 अक्टूबर 2025, दोपहर 1:54 बजे
चतुर्दशी विधि समाप्त : 20 अक्टूबर 2025, दोपहर 3:46 बजे
पूजा मुहूर्त: गोधूलि उमय ( सूर्यास्त वे 15 मिनट पहले और बाद का समय)
दीवाली 2025 विधि और समय
दीबाली पर्व की तिथि: 20 अक्टूबर 2025
व्यापारी प्रविष्टान के लिए:
20 अक्टूबर 2025 को कुम्भ तग्र में 214 PM से 343 P.M. वृष लग्र में 652 PM से 248 PM तक
21 अक्टूबर 2025 को कुम्भ तग्र में 216 PM से 345 PM तक
लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त: प्रदोषकात में वृष लग्र में 652 PM से 248 PM तक,
द्वाधिक पूजा मत्र सिद्धि के लिए-विड़ लग्र में राचि में 1:11 से 3.33 तक
अमावस्या प्रारभ तिथि: 20 अक्टूबर 2025 को दिन में 3:47 PM से
अमावस्या समाप्त विधि: 21 अक्टूबर 2025 को शाम को 554 PM तक
नोट-21 अक्टूबर 2025 को जान, दान की अमावस्या मनाई जाएगी।
दीवाली की कहानी
दिवाली पर्व की कई पौराणिक कहानियों है उनमें से एक है जिसमे 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान श्रीराम् माता सीता व लक्ष्मण अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावाखियो ने अपने मन प्रिय राजा श्रीराम के स्वागत मे पुरे अयोध्या को प्ती के दीपको वे जगमगाकर टीपावली मनाई थी। इसलिए दिवाली को श्रीराम की अयोध्या वापसी का पर्व भी कड़ा जाता है।
दूखरी कण अनुखार, दिवाली की रात समुद्र मध्न वे माता तहपी का प्राकटच हुआ था। देवी लक्ष्मी ४न-समृद्धि की अतिवाची मानी जाती है, इसलिए इसी दिन उनकी पूजा की जाती है।
दीवाली के रीति-रिवाज
दिवाली पर अनेक पारपरिक रीतियों निभाई जाती है जो मगलमय वातावरण बनाती है। कुछ प्रमुख रीतियाँ निम्न है:
सफाई और मनाबरः दिवाली के कई दिन पहले से ही तर, दुकान और मंदिर आदि को अच्छी तरह खाफ़ किया जाता है। झाड पोद्ध कर दीवारो पर रगोली बनाई जाती है और फूलों वे द्वार खजाए जाते है।
दीपक जलानाः शाम को घर-आँगन में प्ती से भरे दीये जलाए जाते है। दीपावली को प्रकाश का पर्व कहा जाता है, इसलिए रात भर घर जगमगाते रहते है।
मिठाइयों और उपहारः- दिवाली पर लोग परिजनों और मित्रो को मिठाई व उपहार देकर प्रषत्रता बाँटते है। यह भाई-बहन और परिवार में प्रेमव खौहार्द बढ़ाने का अवसर है।
लक्ष्मी-गणेश्य पूजाः दीपावली की शाम को परिवार के मुख्य सदस्प माता लक्ष्यी और भगवान गणेश की पूजा करते है। पूजा के समय चवत, फुत्त, फत्त, नारियल, पचमूत आदि सामग्री चढ़ाई जाती है, तथा घर में युद्ध समृद्धि की कामना की जाती है।
दीवाली के लाभ
दिवाली पर्व के कई आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक ताथ होते है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह अधकार। अज्ञानता) पर प्रकाश (ज्ञान) की विजय का प्रतीक है। सामाजिक रूप से दिवाली पारिवारिक एकता एवं प्रेम बढ़ाती है, जब युगी साधी मिलकर दीपावली मनाते है। अर्मिक मान्यतानुसार इस दिन देवी-देवताओ की पूजा से श्रद्धालुओ को दीवाली की पूजा विधि
मनोवैज्ञानिक उतोष और उकारात्मक ऊर्जा मिलती है। आर्थिक दृष्टि से भी दिवाली महत्वपूर्ण है क्योंकि लोग इस अवसर पर नए वरन, आभूषण तथा दीपक आदि खरीदते है, जिससे व्यापार और आर्थिक गतिवितियों बढ़ जाती है।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शाम के समय आन आदि करके पूजा प्रारभ की जाती है। सबसे पहले पूजा वाले स्थान को गगाजल छिडक कर पविच कर ले। फिर चेकी रखकर उसपर ताल कपडा बिजये, इसके बाद बिना टूटे हुए जेडे अक्षत रखकर गणेश जी और लक्ष्मी जी की मूर्ति को रखे। कई जगहों पर कलश की स्थापना की जाती है, यदि आप चड़े तो कलश स्थापना के लिए एक कलश में गगाजल मिलाकर जल भरे और उसमे एक बडी इल्टी, एक सिक्का, एक खुपारी, दुर्वा डालकर रखे और उसके ऊपर कटोरी में चवत भरकर कतरा के मुँह पर आम के पत्ते लगाकर उसे ढक दे। यदि शुभव हो तो एक नारियल में स्मरितक बनाकर उसपर कलावा लपेटकर कलश के ऊपर रखे। कलश को चौकी के दाई तरफ ोडे अक्षत डालकर ही स्थापित करे। भगवान गणेश और माता लक्ष्मी को पचामृत और गगाजल से आन कराए। फिर रोती वे गणेश जी और माता लक्ष्मी जी को टीका करे, भूपबत्ती दिखाए और माला पहनाए। इसके बाद फल, मिखान, फूल और नैवेद्य आदि माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को अर्पित करे। माता लक्ष्मी और गणेश जी की महिमा की कक्ष सुने। पूजन सम्पत्र हो जाने के बाद अन्य दीप में खरों का तेल भर कर कपास की बत्ती लगाकर टीपों को मुख्य द्वार और देवमंदिर, घर, नदी, बगीच आदि जगहों पर दीपक जलाना चाहिए। उस दिन गाय की विग आदि अगो में रग लगाकर उन्हें प्राप्य और अत्र
देकर उनका और उनकी परिक्रमा करके पूजन करना चाहिए। भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी की पूजा का महत्व
दिवाली के दिन पूरी दिति विशन से गणेश और लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है। मा लक्ष्मी ऐश्वर्य और वैभव की देवी है। इसलिए दिवाली के दिन इनकी पूजा करने से ना सिर्फ भौतिक युद्ध की प्राप्ति होती है बल्कि घर में भी ढेर खारी खुशिया आती है। गणेश जी सर्वप्रथम पूजनीय है, इसलिए माता लक्ष्मी जी के साथ सदैव गणेश जी की पूजा की जाती है। लोग अपनी समर्थता के अनुखार लोग अपने प्ठरो को खजाते है। माता लक्ष्‌मी जी उडी घर मे प्रवेश करती है जहाँ खच्छता होती है। इसलिए सभी लोग अपने हरो की सफाई पर विशेष ध्यान देते है। इस दिन पूजा-पाठ करने से घर में अपार खपत्ति आती है। माता लक्ष्मी जी को रगोली बहुत पष्ट है, इसलिए अपने मुख्य द्वार पर रगोली अवश्य बनानी चाहिए। हमारे सनातन धर्म में आम के पेड को एक दिव्य वृक्ष माना जाता है और सभी प्रकार के शर्मिक कार्यों को शुरू करने से पहले आम के पेड की लकड़ी और पत्तियों का उपयोग किया जाता है। दिवाली पर भी आपको तर के मुख्य द्वार और पूजा तर के मुख्य द्वार पर गेटे के फूल और आम के पत्तो से बनी झालर लगानी चाहिए। ऐसा करना न केवल अर्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है, बल्कि वास्तु के अनुसार भी यह एकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। इसके अलावा आपको अपनी परम्परा के अनुखार विति पूर्वक पूजा करनी चाहिए।
दीवाली के मत्र जप
दीपावली के अवडर पर गणेश-तक्ष्मी के कई प्रमुख मत्र जपे जाते है, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण मत्र निम्न है:
ॐ श्री ग सौम्याय गणपतये वर बरट खर्वजन में वशमानय गड़ा। यह गणेशजी का चतुर्दशी -विष्णु मत्र है, जिसका जाप शुभ फलदायक माना जाता है।
ॐ गणेश ऋण द्विन्दि वरेण्य हु नम फट्। यह ऋणहर गणपति मत्र है, जो घर-परिवार की समृद्धि व बाधा निवारण के लिए जपा जाता है।
इन मत्रों के उच्चारण से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और बाएँ दूर होती है। इसके अतिरिक्त परम्परानुष्ठार लक्ष्मी जी के ॐ ही श्री लक्ष्मीध्यो नम आदि बीजमन्त्रो का जाप भी किया जाता है।
दीबाली का महत्व
दिवाली का त्यौहार अनेक दृष्टियों से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अर्मिक रूप से यह पर्व भगवान श्रीराम की अयोध्या वापडी व माता लक्ष्मी के प्रकटच का पर्व है। इसी दिन 14 वर्ष पश्चत श्रीराम ने अयोध्या आकर अपने राज्य की स्थापना की थी। आध्यात्मिक रूप से दिवाली बुराई पर अच्छाई, अज्ञान पर ज्ञान की जीत का प्रतीक है। सामाजिक रूप से यह पर्व परिवार-परिवार मिलकर मनाया जाता है, जिससे मिलन -जुलन बढ़ता है। आर्थिक दृष्टि से लोगों की खरीददारी और निवेश की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, जियवे व्यापार-उद्योग को प्रोत्साहन मिलता है। कहा जाता है कि दिवाली पाँच महापर्वो नतेरख, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा/अत्रकूट, भाई दूज) का उमागम है, जो जीवन मे ४न, धर्म काम् मोक्ष और कल्याण पाचे को प्रदान करने वाला पर्व है।
दीवाली की विशेषता
दीवाली की खास विशेषता यह है कि इसे पाँच दिनों तक मनाया जाता है और हर दिन का अपना महत्व है। धनतेरस से शुरू होकर नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली), मुख्य दिवाली, गोवर्धन पूजा (अन्यत्र अन्नकूट) और भाई दूज तक चलने वाला यह पर्व बेहद रंगीन और हर्षोल्लासपूर्ण होता है। दिवाली के दिन घर-आंगन दीपों से जगमगाते हैं और नींद से जागकर पूजा की तैयारी की जाती है। मिठाइयों की खास तानी फैमिली और मित्रों के बीच बांटी जाती है। दिवाली पर आतिशबाजी की धूम रहती है, जिससे चारों ओर उत्सव की रौनक बनी रहती है। कई क्षेत्रों में इस दिन उपवास और दान-पुण्य करने का भी रिवाज है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

इसे दिवाली क्यों कहा जाता है?
‘दिवाली’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों ‘दीप’ (दीया) और ‘आवली’ (श्रृंखला) से मिलकर बना है। अर्थात दीपों की श्रृंखला। परम्परा है कि इस दिन घरों में घरों में करोड़ों दीये जलाए जाते हैं, द्वार-दरवाजों पर दीपक रखे जाते हैं औरदीपों की एक लंबी श्रृंखला बनती है। इस वजह से इस पर्व को दिवाली यानी ‘दीपावली’ कहा जाता है।

दीवाली किस राज्य में मनाई जाती है?
दिवाली भारत के लगभग सभी राज्यों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश (खासकर अयोध्या, प्रयागराज), राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि में यह पर्व विशेष उत्साह से मनाया जाता है। हर राज्य में इसकी परम्पराएँ थोड़ी अलग हो सकती हैं, लेकिन प्रकाश-वंदन एवं लक्ष्मी-पूजा सब जगह
होती है।

हम दीवाली क्यों मनाते है?
हिंदू परम्परा में मान्यता है कि दिवाली के दिन भगवान श्रीराम अपनी 14 वर्ष की वनवास व रावण वध के बाद अयोध्या लौटे थे, इसलिए उन्हें जल-अक्षत चढ़ाकर और दीप जलाकर स्वागत किया गया था। इसी कारण इसे श्रीराम की विजय पर्व भी कहा जाता है। साथ ही मान्यता है कि इसी रात समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी का अवतरण हुआ,
इसलिए लक्ष्मीजी की पूजा होती है। इस प्रकार दिवाली बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का उत्सव है, इसलिए हम इसका आयोजन करते हैं।

दिवाली पर क्या करना चाहिए?
दिवाली के दिन घर की सफाई करके रंगोली बनानी चाहिए। शाम को दीप जलाकर घर सजाएं और माता लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करें। परिवार एवं मित्रों को मिठाइयाँ और उपहार बांटें। नए वस्त्र पहनें, पूजा में शामिल हो और समाज में सहयोग का भाव रखें। इस दिन सकारात्मक काम (दान, गुरु-वंदना, दानपुण्य) करने से पुण्य मिलता है।

घर पर दिवाली कैसे मनाएं?
घर पर दिवाली मनाने के लिए पहले घर को अच्छी तरह साफ-सुथरा करें। द्वारो पर रंगोली या फूलों की सजावट करें और दीपक जलाएं। दिन में शुद्ध स्रान करके साफ कपड़े पहनें। शाम को लक्ष्मी-गणेश की पूजा करें तथा परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिलकर मिठाई एवं पकवान बाँटे। मौन रखें और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान
करें। घर की दीवारों पर मिट्टी के बने दीपक और लक्ष्मी के पद दिखाकर भी वातावरण को दिवाली जैसा बनाएं।

दिवाली की पूजा कैसे करें?
दिवाली पूजा मुख्यतः शाम के समय ही की जाती है। पूजा की शुरुआत गणेश भगवान की अर्चना से करें, क्योंकि उनके पूजन के बिना लक्ष्मी पूजन अधूरा माना जाता है। पूजा की चौकी लाल वस्त्र से सजाएँ और उसपर अक्षत, फूल, हल्दी-नारियल आदि रखें। गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। दीपक से गंगाजल छिड़कें और पूजन सामग्री (दीये, कपूर, धूप, नैवेद्य) व्यवस्थित करें। फिर गणेश-विष्णु के मंत्र तथा लक्ष्मी के स्तोत्री का जप करें। अंत में दीप आरती निकालकर पारिवारिक मिलन और आने वाले वर्ष में सुख-समृद्धि की कामना करें। पूरा परिवार एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करना भी अच्छा माना जाता है।
6.2025 में दिवाली कब होगी ?
दीवाली पर्व की तिथि- 20 अक्टूबर 2025
लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त- प्रदोष काल में 6:52 P.M से 848 P.M तक
व्यापारिक प्रतिष्ठान में पूजन- कुम्भ लग्न – 2:14 P.M से 3:43 P.M त्तक
अमावस्या प्रारंभ तिथि – 20 अक्टूबर 2025 को दिन में 3:47 P.M से
अमावस्या समाप्त तिथि- 21 अक्टूबर 2025 को शाम को 5:54 P.M तक

दिवाली पर क्या नहीं करना चाहिए?
है, अतः अंधेरे में अनावश्यक हल्ला-गुल्ला न करें। इन सभी बातों से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
दिवाली के दिन स्वयं को पवित्र रखें। सुबह देरतक सोने, नाखून काटने, बाल काटने और झगड़ा-कूद करने से बचें। माता-पिता और बुजुर्गों का आदर करें। पूजा के समय राग-द्वेष वाले विचार न रखें। अलावा में चढ़ावा देते समय मोमबत्ती या सुगंधित तेल का उपयोग करें, शराब-तंबाकू से दूर रहें। दिवाली की शाम भगवती का भ्रमण माना जाता

दिवाली के दिन क्या करना चाहिए?
दिवाली के दिन सुबह जल्दी उठकर स्रान-ध्यान करें और स्वच्छ-नए कपड़े पहनें। पूरे दिन शुभ कार्य करने की चाह रखें। शाम को समय रहते दीपकों की रोशनी करें। लक्ष्मी-गणेश पूजा में शामिल होकर सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करें। ईश्वरीय भजन या कथा-पाठ में समय व्यतीत करें। परिवार के साथ मिलकर रात्रि में भी दीप जलाएं और एक-
दूसरे को शुभकामनाएँ दें। इस दिन उदारता बढ़ाने के लिए दान-पुण्य कस्सा भी हितकर है। कुल मिलाकर दिवाली के दिन सुख-शांति, समृद्धि और सद्भाव बनाए रखने के कामों को वरीयता दें।

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